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प्रसन्नता मनुष्य के सौभाग्य का चिन्ह है। प्रसन्नता एक आध्यात्मिक वृति है, एक दैवी चेतना है। सत्य तो यह है की प्रमुदित मन वाले व्यक्ति के पास लोग अपना दुःख - दर्द भी भूल जाते हैं। जीवन में कुछ न होने पर भी यदि किसी का मन आनंदित है तो वह सबसे संपन्न मनुष्य है। आतंरिक प्रसन्नता के लिए किन्ही बाहरी साधनो की आवश्यकता नहीं होती है क्यूंकि प्रसन्नचित व्यक्ति एक झोपड़ी में भी सुखी रह सकता है और चिंतित व्यक्ति राजमहल में भी दुखी। प्रसन्न मन ही अपनी आत्मा को देख सकता है, पहचान सकता है एवं उस परमात्मा का साक्षात्कार कर सकता है। यह भी सत्य है की जो विकारों से जितना दूर रहेगा उतना ही प्रसन्नचित रहेग। शुद्ध ह्रदय वाली आत्मा सदैव ईश्वर के समीप रह सकती है। हर कोई चाहता है की उसका भविष्य उज्जवल बने, सदा प्रसन्नता उसके जीवन में हो। इच्छा की पूर्ति तनिक भी असंभव नहीं है यदि हम अपने विचारो पर नियंत्रण करना सिख लें एवं कुविचारों को मन से हटाना सिख लें। सद्विचारों में एक आकर्षण शक्ति है जो सदैव हमें प्रसन्न ही नहीं बल्कि परिश्थितियों को भी हमारा दास बना देता है।
यजुर्वेद में उल्लिखित है - "यन्मनसा ध्यायति तद्वाचा वदति, यद्वाचा वदति तत कर्मणा करोति , यत कर्मणा करोति तदभि सम्पन्नते।"
अर्थात मनुष्य जैसा सोचता है उसी अनुरूप बोलता है , जैसा बोलता है वैसे ही कर्म करता है उसी के अनुसार कार्य में सम्पन्नता होती है तथा कार्य या प्रयत्न करने से फल प्राप्त होता है। वस्तुतः मनुष्य की कल्पना व चिंतन का स्टार ऊँचा हो तो स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्ति में श्रेष्ठत्व आ ही जाता है। और इसका सुप्रभाव कर्मा पर परता है। मनुष्य की क्रियाशीलता उसके विचारो को सम्यकरूपेण सिद्ध करने में मन , वचन और कर्मा तीनो की साम्यता आवश्यक है। मन उद्वेग रहित और राग द्वेष से मुक्त हो, वाणी में माधुर्य हो तथा वाणी के कारण किसी को कष्ट न पहुंचे और हमारा चिंतन श्रेष्ठ हो। वही चिंतन श्रेष्ठ है जिसमे सिर्फ अपना नहीं दुसरो की प्रसन्नता का ध्यान हो। ऐसे मनुष्य का व्यक्तित्व ही पूर्ण एवं प्रखर होता है। प्रसन्नता धन से नहीं विचार से मिलती है , स्वार्थ से नहीं परोपकार से मिलती है , सुख पाने से नहीं सुख देने से मिलती है।
एक उदहारण :
दो मित्र एक फुलवारी में टहल रहे थे एक मित्र ने पूछा - बताओ तो, फूल हमेशा मुस्कुराता क्यों रहता है ? दूसरे मित्र ने कहा - चलो , फूलो से ही जाकर पूछते है। फूलो ने कहा - मैं अपनी सुंदरता एवं सुगंधा लुटाता रहता हूँ। मुझमे अच्छे-बुरे का भेद नहीं है , दुसरो को प्रसन्नता देने वाला तो हमेशा प्रसन्ना रहेगा ही। यही हमारे मुस्कराहट का राज है।
फूल बनकर मुस्कुराना जिंदगी है
दुसरो का गम मिटाना ज़िन्दगी है
सूर्य जीवन का न जाने कब ढले
प्रेम जीवन में लूटना जिंदगी है
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