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Kahat Kabir Suno Bhai Sadho - Kabir ke Dohe Bhavartha Sahit

1.  जहां दया तहाँ धर्म है , जहां लोभ तहाँ पाप। 

जहां क्रोध तहाँ काल है , जहां क्षमा तहाँ आप।। 

2. क्या भरोसा देह का विनस जात छीन मांह। 

सांस सांस सुमिरन करि और यातन कछु नाह।।

3. मैं रोऊँ सब जगत को , मोको रोवे न कोय। 

मोको रोवे सोवना , जो शब्द बोय की होये।। 

4. अंतर्यामी एक तुम , आत्मा के आधार। 

जो तुम छोरो हाथ तो , कौन उतरे पार।। 

5. मैं अपराधी जन्म को , नख सिख भरा विकार। 

तुम दाता दुःख भेजना , मेरी करो सम्हार।। 

6.

संकलन 

श्री अमरनाथ तिवारी

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