Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2021

Kahat Kabir Suno Bhai Sadho - Kabir ke Dohe Bhavartha Sahit

1.  जहां दया तहाँ धर्म है , जहां लोभ तहाँ पाप।  जहां क्रोध तहाँ काल है , जहां क्षमा तहाँ आप।।  2. क्या भरोसा देह का विनस जात छीन मांह।  सांस सांस सुमिरन करि और यातन कछु नाह।। 3. मैं रोऊँ सब जगत को , मोको रोवे न कोय।  मोको रोवे सोवना , जो शब्द बोय की होये।।  4. अंतर्यामी एक तुम , आत्मा के आधार।  जो तुम छोरो हाथ तो , कौन उतरे पार।।  5. मैं अपराधी जन्म को , नख सिख भरा विकार।  तुम दाता दुःख भेजना , मेरी करो सम्हार।।  6. संकलन  श्री अमरनाथ तिवारी

भीष्म पितामह द्वारा बताये गए दीर्घायु होने के उपाय

भीष्म पितामह जब शर शैय्या पर पड़े थे तो एक दिन भगवन श्री कृष्णा पांडवो को लेकर उनके पास गए।  संकोचपूर्वक पांडवो ने प्रणाम तो किया लेकिन कुछ बोल नहीं सके , उनकी आँखे डबडबायी हुयी थी।  भीष्म पितामह ने उन्हें ढाढस बंधाया।  तब भगवन श्री कृष्णा ने कहा - बारे भैया ! यह ज्ञानदीप अब बुझने वाला है , अतः आप जो भी ज्ञान की बातें पूछना चाहते हैं , पूछ लीजिये क्यूंकि इनके जैसा बताने वाला फिर बाद में मिलेगा नहीं। भीष्म पितामह ने कहा - हे केशव ! आपके रहते भला मैं क्या बताऊंगा और फिर अब कमजोरी से मेरी स्मृति भी ठीक नहीं रही।  भगवन कृष्णा ने उनके सर पे हाथ रखा जिससे उनकी साडी पीड़ा जाती रही एवं स्मृति भी तजि हो गयी। धर्मज्ञ युद्धिष्ठिर ने उनसे अनेको प्रश्न पूछे जिसका उन्होंने नीतियुक्त उत्तर दिया।  महाभारत के शांति पर्व में यह वर्णित है।  उन्ही में से एक प्रश्न का उत्तर यहां उद्धृत किया जा रहा है।  आशा है , सुहृदय पाठक इससे लाभान्वित होंगे।  युद्धिष्ठिर ने पूछा - मनुष्य किस उपाय से दीर्घायु होता है तथा किस कारन से उसकी आयु क्षीण होती है? भीष्म पितामह ने कहा -   1. सदाचार से मनुष्य को आयु की प्राप्ति होती

भाग्य से बढ़कर पुरुषार्थ (उदहारण सहित) - द्वारा अमित कुमार

img src : youtube.com अथर्ववेद में कहा गया है - पुरुषार्थ मेरे दाएं हाथ में है और सफलता मेरे बाएं हाथ में है| इसका सीधा अर्थ है कि भाग्य के भरोसे वही व्यक्ति बैठता है जो कर्म को जीवन का उद्देश्य नहीं बनाता कर्मशील व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से भाग्य को भी बदल देता है | राजा विक्रमादित्य के पास सामुद्रिक लक्षण जानने वाला एक ज्योतिषी पहुंचा, विक्रमादित्य का हाथ देखकर वह चिंतामग्न हो गया, उसके ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राजा को  दीन दुर्बल और कंगाल होना चाहिए था लेकिन वह तो सम्राट थे स्वस्थ थे लक्षण में ऐसी विपरीत स्थिति संभवतः   उसने पहली बार देखी थी | ज्योतिषी की दशा देखकर विक्रमादित्य   उसकी मनोदशा समझ गए और बोले बाहरी लक्षणों से यदि आपको  संतुष्टि नहीं मिली हो तो मैं छाती चीर कर दिखाता हूं भीतर के भी लक्षण देख लीजिए इस पर ज्योतिषी  बोला - नहीं महाराज! मैं समझ गया की आप निर्भयी हैं , पुरुषार्थी हैं इसीलिए आपने परिस्थितियों को अनुकूल बना लिया है। और भाग्य पर विजय प्राप्त कर ली है।  यह बात मेरी समझ में आ गयी है की युग मनुष्य को नहीं बनाता बल्कि मनुष्य युग का निर्माण करने की क्षमता रखता है।  ए

प्रसन्नता से होने वाले फायदे एवं प्रसन्न रहकर जीने के उपाए।

img src : pngwing.com प्रसन्नता मनुष्य के सौभाग्य का चिन्ह है।  प्रसन्नता एक आध्यात्मिक वृति है, एक दैवी चेतना है।  सत्य तो यह है की प्रमुदित मन वाले व्यक्ति के पास लोग अपना दुःख - दर्द भी भूल जाते हैं।  जीवन में कुछ न होने पर भी यदि किसी का मन आनंदित है तो वह सबसे संपन्न मनुष्य है।  आतंरिक प्रसन्नता के लिए किन्ही बाहरी साधनो की आवश्यकता नहीं होती है क्यूंकि प्रसन्नचित व्यक्ति एक झोपड़ी में भी सुखी रह सकता है और चिंतित व्यक्ति राजमहल में भी दुखी।  प्रसन्न मन ही अपनी आत्मा को देख सकता है, पहचान सकता है एवं उस परमात्मा का साक्षात्कार कर सकता है।  यह भी सत्य है की जो विकारों से जितना दूर रहेगा उतना ही प्रसन्नचित रहेग। शुद्ध ह्रदय वाली आत्मा सदैव ईश्वर के समीप रह सकती है।  हर कोई चाहता है की उसका भविष्य उज्जवल बने, सदा प्रसन्नता उसके जीवन में हो।  इच्छा की पूर्ति तनिक भी असंभव नहीं है यदि हम अपने विचारो पर नियंत्रण करना सिख लें एवं कुविचारों को मन से हटाना सिख लें।  सद्विचारों में एक आकर्षण शक्ति है जो सदैव हमें प्रसन्न ही नहीं बल्कि परिश्थितियों को भी हमारा दास बना देता है।  यजुर्वेद में उ