1. जहां दया तहाँ धर्म है , जहां लोभ तहाँ पाप। जहां क्रोध तहाँ काल है , जहां क्षमा तहाँ आप।। 2. क्या भरोसा देह का विनस जात छीन मांह। सांस सांस सुमिरन करि और यातन कछु नाह।। 3. मैं रोऊँ सब जगत को , मोको रोवे न कोय। मोको रोवे सोवना , जो शब्द बोय की होये।। 4. अंतर्यामी एक तुम , आत्मा के आधार। जो तुम छोरो हाथ तो , कौन उतरे पार।। 5. मैं अपराधी जन्म को , नख सिख भरा विकार। तुम दाता दुःख भेजना , मेरी करो सम्हार।। 6. संकलन श्री अमरनाथ तिवारी
भीष्म पितामह जब शर शैय्या पर पड़े थे तो एक दिन भगवन श्री कृष्णा पांडवो को लेकर उनके पास गए। संकोचपूर्वक पांडवो ने प्रणाम तो किया लेकिन कुछ बोल नहीं सके , उनकी आँखे डबडबायी हुयी थी। भीष्म पितामह ने उन्हें ढाढस बंधाया। तब भगवन श्री कृष्णा ने कहा - बारे भैया ! यह ज्ञानदीप अब बुझने वाला है , अतः आप जो भी ज्ञान की बातें पूछना चाहते हैं , पूछ लीजिये क्यूंकि इनके जैसा बताने वाला फिर बाद में मिलेगा नहीं। भीष्म पितामह ने कहा - हे केशव ! आपके रहते भला मैं क्या बताऊंगा और फिर अब कमजोरी से मेरी स्मृति भी ठीक नहीं रही। भगवन कृष्णा ने उनके सर पे हाथ रखा जिससे उनकी साडी पीड़ा जाती रही एवं स्मृति भी तजि हो गयी। धर्मज्ञ युद्धिष्ठिर ने उनसे अनेको प्रश्न पूछे जिसका उन्होंने नीतियुक्त उत्तर दिया। महाभारत के शांति पर्व में यह वर्णित है। उन्ही में से एक प्रश्न का उत्तर यहां उद्धृत किया जा रहा है। आशा है , सुहृदय पाठक इससे लाभान्वित होंगे। युद्धिष्ठिर ने पूछा - मनुष्य किस उपाय से दीर्घायु होता है तथा किस कारन से उसकी आयु क्षीण होती है? भीष्म पितामह ने कहा - 1. सदाचार से मनुष्य को आयु की प्राप्ति होती